हँसती और मुस्कुराती, मैं आशा हूँ।
निराशा को दूर भगाती और सबकी हिम्मत बढ़ाती, मैं आशा हूँ।
खड़ी हूँ यही चौखट पर तुम्हारी,
बस बंद दरवाज़े खोलने की देर है।
सोच रहे हो क्या तुम, किस उधेड़बुन में हो?
दोस्त तो बनो मेरे एक बार, किस आशंका में हो?
गर एक बार थामा मेरा दामन,
तो मैं जीवन भर साथ नहीं छोडूँगी।
चलूंगी संग संग तेरे, सपनों को उड़ान दूँगी।
गर गिर रहा होगा तो संभाल लूंगी।
और फिर से उठने का हौंसला दूँगी।
हँसती और मुस्कुराती, मैं आशा हूँ।
निराशा को दूर भगाती और सबकी हिम्मत बढ़ाती, मैं आशा हूँ।
©®दीपिका
सुंदर रचना
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Aapka bahut bahut Dhanyawad🙏🙏
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आभार🙏
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