समय हमेशा एक सा नहीं रहता

समय हमेशा एक सा नहीं रहता…

चाहते तो हम सभी है कि अपने खुशनुमा पलों को अपनी मुट्ठी में कैद कर ले,
जी ले हर उस लम्हें को भरपूर और अपनी खुशियों को दुगुना कर ले
पर जीवन की ये गाड़ी हमेशा सीधे सीधे रास्तों पर नहीं चल पाती,
कभी उतार तो कभी चढ़ाव के साथ ज़िंदगी हमेशा एक सी नहीं रहती।

आज का ये एपिसोड जिंदगी के इन्हीं उतार चढ़ावों के बारे में बात करता है और सुझाता है कुछ रास्ते जो कि हमारी मुश्किलों को कुछ हद तक कम कर सके।

तो सुने इस एपिसोड को और अपनी प्रतिक्रिया जरूर दे।

http://Full episode link👇

https://anchor.fm/deepika-mishra/episodes/Episode-28-Samay-hamesha-ek-sa-nahi-rahta-e196g6c

जिंदगी तेरे रूप अनेक….

कभी देखा है जिंदगी को गौर से, कितनी समझ में आएंगी ये भी सबकी समझ के ऊपर ही निर्भर करता है।
जितने लोग, उतने नज़रिए, जितनी सोच, उतनी बातें। सही भी है, पांचों ऊंगलियां कब बराबर होती है और होनी भी नहीं चाहिए।

कभी हमारे नज़रिए से कुछ सही होता है तो कभी हम दूसरों के नज़रिए को समझ नहीं पाते, कभी उसी बात को हँसी में टाल देते है तो कभी उसी पर रूठ जाते है।कुल मिलाकर बस अपने अहम को पोषित करते रहते है।

शायद कभी अपने मैं से बाहर निकल ही नहीं पाते ,जो हमारे अहम को स्वीकार करता है वो सही और जो नहीं, वो गलत बन जाता है, दूसरे को अपनी जगह पर रख कर सोच पाने में हम आज भी सक्षम नहीं है।

शायद रिश्तों का मायाजाल है ये सब, जिसके मोह में हम कहीं उलझ कर रह जाते है, किसे छोड़े, कहाँ जाएँ, कुछ पता नहीं…जब तक मसरूफ़ियत रहती है तब तो ठीक है, वरना खाली मन तो ना जाने कहाँ तक टहल आता है।

इल्तेज़ा इतनी कि तू अपनी जड़ों को मत भूल जा…

इल्तेज़ा इतनी कि तू अपनी जड़ों को मत भूल जा,

जिन ऊँगलियों को पकड़ कर सीखा है चलना, उनसे हाथ न छुड़ा।

पथराई आँखे, काँपते हाथ शायद बहुत कुछ कहना चाहते है तुझसे,

इस भाग दौड़ की आपाधापी में तू इनसे नज़रें ना चुरा।

इल्तेज़ा इतनी कि तू अपनी जड़ों को मत भूल जा…..

तेरा तुझमें बहुत कुछ उनका सा भी है,

तुझे सम्पूर्ण बनाने में जिसने अपना खून पसीना दिया।

अब आगे निकल जाने पर उनको पिछड़ा ना गिना,

सिर्फ़ बातों से नहीं, अपने प्यार से उनके प्यार की क़ीमत चुका।

इल्तेज़ा इतनी कि तू अपनी जड़ों को मत भूल जा….

©®दीपिकामिश्रा

Welcome to the podcast poetry👇

https://anchor.fm/deepika-mishra/episodes/Episode-25-Tu-apni-jado-ko-mat-bhul-ja-e13m6kv

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https://youtu.be/4tGnUFE4ZjE

Shower your love🌼🌼

Regards & Gratitude,

Deepika Mishra

वो मेरे पापा है..

Happy Father’s Day

वो जो थोड़ा सकुचाते है, कितना है प्यार उन्हें अपने बच्चों से, थोड़ा कम ही बताते है।

वो मेरे पापा है,जो थोड़ा कम ही जताते है….

किसी भी चीज़ की कमी ना होने पाएं उनके प्यारों को, इसके लिए जो सारी तकलीफ़ सह जाते है।

वो मेरे पापा है जो थोड़ा कम ही जताते है…

जबसे समझा, उनको जाना पाया कि कैसे अपने तन का ना करके अपने बच्चों को सुंदर पोशाकों से सजाते है।

वो मेरे पापा है, जो थोड़ा कम ही जताते है….

क्या चाहिए हमें, उसकी लिस्ट पहले बनवाते है, खुद के फटे जूतों की सुध भी जो ना ले पाते है।

वो मेरे पापा है, जो थोड़ा कम ही जताते है….

उनके लिए क्या लिखूँ, क्या कहूँ, शब्द ही काम पड़ जाते है, जो चुप रहकर अपनी चुप्पी से ही काफ़ी कुछ कह जाते है।

वो मेरे पापा है, जो थोड़ा कम ही जताते है।

©® दीपिकामिश्रा

Happy Father’s Day….

Full video link👇

https://youtu.be/Gj2gSlW_cPE

काश!! सब मन चाहा होता…


कितने लोगों ने कितनी ही बार ये सोचा होगा,
सोते जागते इन सपनों को बुना होगा।

कितना अच्छा होता कि सब कुछ मन चाहा होता,जो मन होता वो कर जाता, जहाँ मन चाहे टहल आता।

काश!! सब मन चाहा होता…तो कितना अच्छा होता।

पर जिंदगी इंस्टेंट नूड्ल्स की तरह नहीं होती वो तो एक स्वादिष्ट डिश की तरह होती है,

जिसे पकने में काफ़ी समय, काफ़ी धैर्य, काफ़ी कौशल और काफ़ी कला लगती है।

जहाँ नमक, मिर्च और मसालों का समायोजन एकदम संतुलित होता है,
कोई भी स्वाद एक दूसरे को ओवर पॉवर नहीं कर रहा होता है।

वैसे ही ज़िंदगी होती है जहाँ बहुत से रिश्ते बनते और बिगड़ते रहते है,
आगे बढ़ने और ऊँचा बनने की लड़ाई में एक दूसरे से कितना झगड़ते रहते है।

खुद को ऊँचा उठाने की कोशिश करे, दूसरों को गिराने की नहीं,
सब कुछ मनचाहा मिल जाता तो जिंदगी का ये स्वाद रह जाता, कहिए सही कह रही हूँ या नहीं।

जो मनचाहा मिलता है उसका स्वागत करे, उसका आंनद ले।
और जो नहीं मिला है उसके बारे में सोचकर खुले रास्तों को बंद ना करे।

©®दीपिकामिश्रा

वीडियो देखने के लिए यहाँ क्लिक करे👇

https://youtu.be/FuoT8pxZokM

चमक उसके स्वाभिमान की…

कौन कहता है कि ये सच नहीं, वो करती सब है, पर सबको जँचती नहीं।

सारा माहौल संभालती है पर अपने अंदर का माहौल बिगड़ने के भय से कभी बचती नहीं।

वो लड़ती रहती है रोज़ अपने अंदर की कशमकश से,

अपने बारे में सोचे या करे समझौता हर छोटे बड़े किस्से से।

आसां नहीं होता अपने आप को उन चीज़ों के लिए मना लेना,

स्वच्छंद उड़ने वाले पंछी को एक छोटे से पिंजरे में कैद कर देना।

अपनी परवाज़ को वो एक ऊँचाई देना चाहती है,

पर अपने स्वाभिमान के साथ समझौता उसे कतई पसंद नहीं है।

इसी तरह चलते चलते वो काफ़ी सफ़र तय कर लेती है,

आते जाते दो राहों पर भी वो मंज़िल नहीं वो खोती है।

उसके भीतर की टोह लेना इतना भी आसान नहीं होता,

वो सिर्फ़ एक औरत नहीं, एक पूरा संसार उसके आँचल में है बसता।

~~दीपिकामिश्रा

रंगों की बोली…

रंग बदलती इस दुनिया में कुछ रंग ऐसे भी है

जिन से बनती है ये ज़िन्दगी खूबसूरत और बेहतरीन।

जो ये रंग ना हो तो

सब कुछ होते हुए भी लगे फ़ीका फ़ीका जैसे नमक बिना लगे नमकीन।

वो रंग है अपनेपन का, जो खून के रिश्तों का मोहताज़ नहीं होता।

वो रंग है दोस्ती का, जो यारों के लिए हर डाँट सुनने को तैयार रहता है।

वो रंग है सादगी का, जो सारी चकाचौंध को खुद में समा लेता है।

वो रंग है समर्पण का,जो अपनों की सुध में खुद को भुला देता है।

वो रंग है सच्चाई का, जो हर झूठ को आईना दिखा देता है।

वो रंग है अच्छाई का, जो बुराई को भी खुद में समा लेता है।

वो रंग है खुशी का, जो गमों को भुला दे।

वो रंग है हँसी का जो फिर से जीना सीखा दे।

~~दीपिकामिश्रा

अर्ज़ किया है…ये जरूरी तो नहीं।

अपनापन खून के रिश्तों की ड़ोर से बंधा हो,

ये जरूरी तो नहीं।

मैं सोचती हूँ जैसा अपने बारे में,

तुम भी सोचो वैसा मेरे बारे में ये जरूरी तो नहीं।

तुम आज़ाद हो, मेरे बारे में अपनी राय बनाने में,

मुझे मेरी दृष्टि में हेय बनाकर बार बार नज़रों से गिराने में।

पर…पर

तुम्हारे प्रयासों को सफलता तब ही मिलेगी,

जब मैं भी तुम्हारी सोच में अपनी मौन सहमति दर्शा दूँ।

तुम बनाना चाहते थे जैसा मुझे शनै शनै मैं भी खुद को वैसा बनता देखूँ।

भीड़ से अलग सोचने में और अलग खड़ा रहने में एक अलग सी हिम्मत लगती है,

जाने सब करते है क्यूँ ऐसा मेरे साथ ही, इस बारे में सोचना मुझे वक़्त की बर्बादी लगती है।

अपना काम करना और खुश रहना, ये मेरे जीने का सिद्धांत हो सकता है,

सबकी ज़िंदगी का भी यही हो सिद्धांत, ये जरूरी तो नहीं।

अपनापन खून के रिश्तों की ड़ोर से बंधा हो,

ये जरूरी तो नहीं।

मैं सोचती हूँ जैसा अपने बारे में,

तुम भी सोचो वैसा मेरे बारे में ये जरूरी तो नहीं।

~~दीपिकामिश्रा

आप इस कविता को यहाँ सुन भी सकते है, पसंद आये तो चैनल को जरूर सब्सक्राइब करे👇

https://youtu.be/TgocQn4Yicc

Happy New Year 2021

खुदा का शुक्र है कि भरम ये टूट गया, जिसे समझते थे हम आशियाँ अपना वो तो किसी और का ही मकान निकला।

सोच रही थी कि इस साल जो भी हुआ, हो गया, बीत गया, अब नए साल का आगमन है…

पर इस साल बहुत से लोगों ने अपने करीबियों को खो दिया, कैसे संवेदनाएं व्यक्त करूँ, पता नहीं।

बस ये साल मुझे सिखा के जा रहा है कि ज़िंदगी के जितने भी दिन बचे है उन्हें बिना किसी मलाल के अपनों के साथ जी लो।

आशा करती हूँ कि नया साल हम सभी के लिए आशाओं के नए सूरज के साथ उदय हो।

~~दीपिकामिश्रा

Maybe she is good for nothing for others…

Maybe she is good for nothing for others…

But how can she ignore it???

Damn!! It is her self respect.No matter what others think.

Now it is high time…she must listen to her inner voice,

Others must understand that she too can have her own choice.

Why do they question her personality and integrity?

Are they even worthy enough to blot her dignity?

When they harass her with an abusive tone and rough voice,

How then does she accept this, after all, isn’t it a matter of her pride!

Gradually she also starts accepting what others think about her.

She doesn’t even feel like facing her favourite mirror.

She doesn’t understand what is going wrong with her.

How can she be the reason for every problem?

It is high time, she understands that she too own a unique place in between those thousand personalities,

She can also think about her future and life, despite fulfilling her duties.

Maybe she is good for nothing for others….

~~Deepika Mishra

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Deepika Mishra

Motivational Blogger & Writer