अपनापन खून के रिश्तों की ड़ोर से बंधा हो,
ये जरूरी तो नहीं।
मैं सोचती हूँ जैसा अपने बारे में,
तुम भी सोचो वैसा मेरे बारे में ये जरूरी तो नहीं।
तुम आज़ाद हो, मेरे बारे में अपनी राय बनाने में,
मुझे मेरी दृष्टि में हेय बनाकर बार बार नज़रों से गिराने में।
पर…पर
तुम्हारे प्रयासों को सफलता तब ही मिलेगी,
जब मैं भी तुम्हारी सोच में अपनी मौन सहमति दर्शा दूँ।
तुम बनाना चाहते थे जैसा मुझे शनै शनै मैं भी खुद को वैसा बनता देखूँ।
भीड़ से अलग सोचने में और अलग खड़ा रहने में एक अलग सी हिम्मत लगती है,
जाने सब करते है क्यूँ ऐसा मेरे साथ ही, इस बारे में सोचना मुझे वक़्त की बर्बादी लगती है।
अपना काम करना और खुश रहना, ये मेरे जीने का सिद्धांत हो सकता है,
सबकी ज़िंदगी का भी यही हो सिद्धांत, ये जरूरी तो नहीं।
अपनापन खून के रिश्तों की ड़ोर से बंधा हो,
ये जरूरी तो नहीं।
मैं सोचती हूँ जैसा अपने बारे में,
तुम भी सोचो वैसा मेरे बारे में ये जरूरी तो नहीं।
~~दीपिकामिश्रा
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क्या खूब कहा है ये जरुरी तो नहीं…
अपने से खुश रहिये ये ज्यादा जरुरी है
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Thank you Pragun🙏🙏
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Enjoyed reading your poem Deepika ❤️It is oozing with remarkable thoughts of prudence and sunshine!
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Thank you Daisy🙏
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Interesting lines there… you could do a series of poems on apnapan.
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Thank you Arvind Ji🙏🙏 Thanks for the suggestion.
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Aapki kavitayen hamesha hi acchi hoti hain
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Thank you Pooja Ji🙏
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Hey Deepika, you have a lovely voice and have narrated the poem very happily. I agree that if you let other’s negative thoughts bother you then only that other person is successful.
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wish i could read hindi well.
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