इल्तेज़ा इतनी कि तू अपनी जड़ों को मत भूल जा,
जिन ऊँगलियों को पकड़ कर सीखा है चलना, उनसे हाथ न छुड़ा।
पथराई आँखे, काँपते हाथ शायद बहुत कुछ कहना चाहते है तुझसे,
इस भाग दौड़ की आपाधापी में तू इनसे नज़रें ना चुरा।
इल्तेज़ा इतनी कि तू अपनी जड़ों को मत भूल जा…..
तेरा तुझमें बहुत कुछ उनका सा भी है,
तुझे सम्पूर्ण बनाने में जिसने अपना खून पसीना दिया।
अब आगे निकल जाने पर उनको पिछड़ा ना गिना,
सिर्फ़ बातों से नहीं, अपने प्यार से उनके प्यार की क़ीमत चुका।
इल्तेज़ा इतनी कि तू अपनी जड़ों को मत भूल जा….
©®दीपिकामिश्रा
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Deepika Mishra