कितने लोगों ने कितनी ही बार ये सोचा होगा,
सोते जागते इन सपनों को बुना होगा।
कितना अच्छा होता कि सब कुछ मन चाहा होता,जो मन होता वो कर जाता, जहाँ मन चाहे टहल आता।
काश!! सब मन चाहा होता…तो कितना अच्छा होता।
पर जिंदगी इंस्टेंट नूड्ल्स की तरह नहीं होती वो तो एक स्वादिष्ट डिश की तरह होती है,
जिसे पकने में काफ़ी समय, काफ़ी धैर्य, काफ़ी कौशल और काफ़ी कला लगती है।
जहाँ नमक, मिर्च और मसालों का समायोजन एकदम संतुलित होता है,
कोई भी स्वाद एक दूसरे को ओवर पॉवर नहीं कर रहा होता है।
वैसे ही ज़िंदगी होती है जहाँ बहुत से रिश्ते बनते और बिगड़ते रहते है,
आगे बढ़ने और ऊँचा बनने की लड़ाई में एक दूसरे से कितना झगड़ते रहते है।
खुद को ऊँचा उठाने की कोशिश करे, दूसरों को गिराने की नहीं,
सब कुछ मनचाहा मिल जाता तो जिंदगी का ये स्वाद रह जाता, कहिए सही कह रही हूँ या नहीं।
जो मनचाहा मिलता है उसका स्वागत करे, उसका आंनद ले।
और जो नहीं मिला है उसके बारे में सोचकर खुले रास्तों को बंद ना करे।
©®दीपिकामिश्रा
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https://youtu.be/FuoT8pxZokM
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जिंदगी एक इम्तेहान!!
जिंदगी एक इम्तेहान..
जिंदगी हर कदम एक नया इम्तेहान लेती है,कभी फूलों का हार तो कभी काँटों की सेज देती है
।ये हम पर है कि क्या हम डर जाते है मुश्किलों का सामना करने से?
कभी खुद की कमजोरियों से और कभी औरों की चुनौतियों से।
ये भी सच है कि..बार बार किस्मत दरवाजे पर दस्तक दिया नहीं करती है,
जो गर तू खुद अपनी कद्र नहीं करती है तो औरों से अपेक्षा भी व्यर्थ ही रखती है।
कुछ चीजों को अब समय के साथ सीखना ही होगा..
खुद ही अपने मनोबल को ऊँचा करना होगा,
और हर छोटी बात को दिल पर लगाकर, व्यर्थ में समय गँवाने की आदत को भूलना होगा।
तभी एक आशा से भरी राह खुद के लिए खोज पाएंगे,
थोड़ा थोड़ा करके ही सही अपनी सफलता का घड़ा खुद अपने लिए भर पाएंगे।
~~दीपिका
ऐ मन! तू अच्छा करता है।
ऐ मन! तू अच्छा करता है,
जो खुद रोकर अपने आँसू खुद ही पोंछ लेता है।
अच्छा करता है जो किसी भ्रम में नहीं जीता है,
अपने स्वाभिमान को तार तार नहीं होने देता है।
ऐ मन! तू अच्छा करता है।
कोई आएंगा और पोछेंगा आँसू मेरे, इस भुलावे में नहीं जीता है।
खुद गिरता है तो खुद उठने की भी ताकत रखता है।
खुद देता है खुद को संबल, और खुद ही अपनी राह चुनता है।
ऐ मन! तू अच्छा करता है।
दूसरे आएंगे तो मुमक़िन है कि सिर्फ़ तेरी गलतियाँ ही बताएंगे,
घाव पर मरहम लगाने की बात कहकर, जख्मों को ही कुरेद जाएंगे।
बची हुई आस और हिम्मत पर भी प्रश्न चिन्ह लगाएंगे।
तेरे दामन में है कितने दाग, ये बार बार तुझको ही गिनवाएंगे।
फिर आएंगे कहकर, बीच राह में ही छोड़ जाएंगे।
तू समझाता रह जाएंगा खुद को और वो अपनी दुनिया में ही मस्त हो जाएंगे।
ऐ मन! तू अच्छा करता है,जो खुद रोकर अपने आँसू खुद ही पोंछ लेता है।
अच्छा करता है जो किसी भ्रम में नहीं जीता है,अपने स्वाभिमान को तार तार नहीं होने देता है।
©®दीपिका
यहाँ पढ़े।
“क़ाफी हूँ मैं”!!
https://myaspiringhope.wordpress.com/2020/05/18/kafi-hu-mai/
यहाँ सुने।
“अभी थमी नहीं ज़िंदगी”!!
नई सहर रोशनी वाली!
गमों के बादल छंट जाएँगे जब होगी नई सहर रोशनी वाली।
एक एक तिनके से बनेगा फिर से आशियाँ उम्मीदों वाला,
और एक नई डगर की तलाश होगी।
हम भी चल देंगे साथ तुम्हारे, कुछ बेहतरी की आस में।
फिर से एक नई दुनिया, नई शुरुवात के लिए तैयार होगी।
अँधेरा कब तक रोकेगा उजाले की परवाज़ को
चिंता कब तक रोकेंगी उसके अगले आगाज़ को।
वो फिर उठेगा एक यौद्धा की तरह कर्मवीर बनकर,
फिर से वही रौनक बाज़ारों में लौटेगी।
गमों के बादल छंट जाएँगे जब होगी नई सहर रोशनी वाली।
एक एक तिनके से बनेगा फिर से आशियाँ उम्मीदों वाला,
और एक नई डगर की तलाश होगी।
बस तू धीरज न खो, हिम्मत न हार,
लगा रह अपनी कोशिशों में।
फिर से तेरी तक़दीर तेरी चौखट पर तेरा इंतज़ार कर रही होगी।
फिर से एक नई सहर नई ऊर्ज़ा के साथ तेरा दीदार कर रही होगी।
गमों के बादल छंट जाएँगे जब होगी नई सहर रोशनी वाली।
एक एक तिनके से बनेगा फिर से आशियाँ उम्मीदों वाला,
और एक नई डगर की तलाश होगी।
©® दीपिका
पॉडकास्ट सुने।
https://anchor.fm/deepika-mishra/episodes/Ulahana-Complaint-ed0l6t
वक़्त जो रुकता नहीं।
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प्यार की ताक़त!https://myaspiringhope.wordpress.com/2020/04/18/pyar-ki-taakat/
माँ की जादूगरी!https://myaspiringhope.wordpress.com/2020/04/17/maa-ki-jaadugari/
नज़रिये का फेर!https://myaspiringhope.wordpress.com/2020/04/16/nazariye-ka-pher/
मन की सुंदरता!https://myaspiringhope.wordpress.com/2020/04/15/man-ki-sundarta/
लम्हे जो बीत गए है।https://myaspiringhope.wordpress.com/2020/04/14/lamhe-jo-beet-gaye-hai/
बीते कल की परछाई!https://myaspiringhope.wordpress.com/2020/04/13/beete-kal-ki-parchaai/
जंग दिल और दिमाग की!https://myaspiringhope.wordpress.com/2020/04/11/jang-dil-aur-dimag-ki/
हज़ारों बहाने है जीने के!https://myaspiringhope.wordpress.com/2020/04/09/hazaro-bahane-hai-jeene-ke/
गमों के बादल!https://myaspiringhope.wordpress.com/2020/04/08/gamo-ke-baadal/
वो एक फ़रिश्ता!https://myaspiringhope.wordpress.com/2020/04/06/vo-ek-pharista/
इंसानियत कुछ खो सी गई है!https://myaspiringhope.wordpress.com/2020/04/06/insaaniyat-jo-kuch-kho-si-gayi-hai/
और भी दर्द है इस ज़माने में!https://myaspiringhope.wordpress.com/2020/04/04/aur-bhi-dard-hai-is-zamane-main/
चलो फिर से शुरू करते है।https://myaspiringhope.wordpress.com/2020/04/03/chalo-phir-se-shuru-karte-hai/
बेमक़सद जीना भी कोई जीना है?https://myaspiringhope.wordpress.com/2020/04/01/bemaksad-jina-bhi-koi-jina-hai/
अजीब दास्तां है ये!https://myaspiringhope.wordpress.com/2020/04/01/ajeeb-dastaan-hai-ye/
इंतज़ार अच्छे वक़्त का!
हम अच्छे वक़्त का इंतज़ार ही करते रहते जाते है,
कुछ पीछे छूट जाता है तो कुछ हम खुद छोड़ के आगे बढ़ जाते है।
ऐसा कर के कभी खुद को धोखा देते है,तो कभी किसी और से धोखा पाते है।
और फिर एक बार हम अच्छे वक़्त का इंतज़ार ही करते रह जाते है।
समय का पहिया गतिमान है किसी के लिए नहीं रुकता है,
हमें ही समझनी होती है उसकी गति और खुद ही सामंजस्य बिठाना पड़ता है।
गलती हमारी होती है और हम दूसरों पर दोष मढ़ते रह जाते है,
और हम फिर यूँ ही हाथ पर हाथ रखकर अच्छे वक़्त का इंतज़ार ही करते रह जाते है।
समय रहते ही चीजों को सुधारने की कोशिश की होती तो शायद नज़ारे कुछ और होते।
हमारे भी परिश्रम और सफलताओं के किस्से चहुँ ओर होते।
अच्छे वक़्त का इंतज़ार नहीं, अच्छा वक्त खुद के लिए कमाना पड़ता है।
खुद को हर उस हारी हुई सोच से ऊपर उठाकर जीत के क़ाबिल बनाना पड़ता है।
वरना हम अच्छे वक़्त का इंतज़ार ही करते रहते जाते है,
कुछ पीछे छूट जाता है तो कुछ हम खुद छोड़ के आगे बढ़ जाते है।
©®दीपिका
हज़ारों बहाने है जीने के!https://myaspiringhope.wordpress.com/2020/04/09/hazaro-bahane-hai-jeene-ke/
गमों के बादल!https://myaspiringhope.wordpress.com/2020/04/08/gamo-ke-baadal/
वो एक फ़रिश्ता!https://myaspiringhope.wordpress.com/2020/04/06/vo-ek-pharista/
इंसानियत कुछ खो सी गई है!
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हज़ारों बहाने जीने के!
एक रास्ता बंद हो तो दूसरा खुल ही जाता है।मुश्किलों की जड़ें कितनी ही गहरी क्यूँ ना हो, हल निकल ही आता है।
असफलता बंद नहीं कर सकती है द्वार सफलता के,
अगर हल खोजे जाएं तो हज़ारों बहाने निकल ही आएंगे खुल के जीने के।
कितना आसान होता है, हार मान कर बैठ जाना,
ये तो मुझसे होगा ही नहीं, ऐसा सोचकर जंग लड़ने से पहले ही हथियार डाल देना।
शायद एक कोशिश एक नई आशा का द्वार खोल सकती है,
जो कल तक था असंभव, उस पर विश्वास की एक नई कोंपल अंकुरित हो सकती है।
जरूरत है तो बस थोड़ा धैर्य रखने की,लगातार कोशिशें करने की,
हिम्मत नहीं हारने की,बिगड़ी बनाने की और अनसुलझी सुलझाने की।
एक छोटी सी हार से क्यूँ जिंदगी अपने मायने खो देती है?
क्या सस्ती है जान इतनी कि हर चौराहे पर बोली लगा करती है।
विश्वास रखो कि
एक रास्ता बंद हो तो दूसरा खुल ही जाता है।मुश्किलों की जड़ें कितनी ही गहरी क्यूँ ना हो, हल निकल ही जाता है।
©® दीपिका
गमों के बादल!
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वो एक फ़रिश्ता!
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इंसानियत जो कुछ खो सी गई है।
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वो एक फ़रिश्ता!
क्या होती है परिभाषा एक फ़रिश्ते की?
आज की कविता इसी सवाल के नाम।
स्वागत करती हूँ आप सभी लोगों का एक बार फिर से “बातें कुछ अनकही सी” के अगले भाग में जहाँ आज खोज जारी है उस फ़रिश्ते की जिसे मैंने कल देखा था।
वो एक फ़रिश्ता!
कल देखा था मैंने एक फ़रिश्ता,
जो कि चिड़ियों को दाना चुगा रहा था,
प्यासों को पानी पिला रहा था और भूखों को खाना खिला रहा था।
चेहरे पर उसके तेज़ था जैसे कई सूरज मिलकर अपनी आभा बिखेर रहे हो।
अपने आशियानों से निकल कर किसी और का जीवन बदल रहे हो।
देखा तो लगा कि क्यूँ मैं भी ये नहीं कर सकती,किसी की आँखों का सपना और किसी की आत्मा को तृप्त क्यूँ नहीं कर सकती।
कल देखा था मैंने एक फ़रिश्ता,
जो कि चिड़ियों को दाना चुगा रहा था,
प्यासों को पानी पिला रहा था और भूखों को खाना खिला रहा था।
इससे बड़ी एक फ़रिश्ते की पहचान क्या हो सकती है!
जिसकी खुद की चादर फटी हो, जिसका खुद का पेट खाली हो,
पर ख़्वाहिश कितनों का तन ढ़कने की और उनका पेट भरने की हो।
तो सच में देव पुरुष है उपाधि का अधिकारी है।
कब कौन समझे तेरी भावनाओं को जो कहते तुझे कि अरे! ये तो खुद भिखारी है।
कल देखा था मैंने एक फ़रिश्ता,
जो कि चिड़ियों को दाना चुगा रहा था,प्यासों को पानी पिला रहा था और भूखों को खाना खिला रहा था।
©®दीपिका
इंसानियत जो कुछ खो सी गई है।
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और भी दर्द है इस ज़माने में!
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चलो फिर से शुरू करते है!
https://myaspiringhope.wordpress.com/2020/04/03/chalo-phir-se-shuru-karte-hai/
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और भी दर्द है इस जमाने में।
चलिए आज बात करते है “बातें कुछ अनकही सी” में कुछ उस अनकहे दर्द के बारे में, जिसे कई बार हम समझ पाते है और कई बार जाने अनजाने अनसुना कर देते है अपनी ज़िंदगी की भाग दौड़ में।
भी दर्द है इस ज़माने में
खुदगर्ज़ी की इन्तेहाँ तो देखो, वो दर्द भी दिए जाते है और “बेकसूर” भी कहलाते है,
क्या करे अपना दर्द बयां?
और भी दर्द है इस जमाने में, चलो किसी बंद दरवाजें को ताज़ी हवा के लिए खोल के आते है।
पैबंद तो कई है आज भी उसकी पोशाक पर,
पर नज़रों के वार उसके वजूद को तार तार किए जाते है।
और भी दर्द है इस जमाने में, चलो किसी बंद दरवाजें को ताज़ी हवा के लिए खोल के आते है।
बहुत बड़ी तादाद है अभी भी ऐसे लोगों की, जो कि सिर्फ अपने दर्द को सबसे बड़ा पाते है।
किसी की टूटी चारपाई और किसी की घिसी चप्पलें उनका “हाल ए दर्द” छुपा भी नहीं पाते है।
क्या कहे और क्या नहीं, इतना अंतर भी अपनी मासूमियत में समझ भी नहीं पाते है,
और भी दर्द है इस जमाने में, चलो किसी बंद दरवाजें को ताज़ी हवा के लिए खोल के आते है।
खुद गर्ज़ इतने भी ना बने कि खुदगर्ज़ी खुद शर्म के चोले में छुप जाए।
कोई भूखा, कोई बीमार सिर्फ़ मदद की आस में हाथ फैलाता ही रह जाए।
चलो कुछ कम करने की कोशिश करते है ऊँच नीच के फ़ासलें को और आधी आधी बाँट कर खाते है।
और भी दर्द है इस जमाने में, चलो बंद दरवाजों को ताज़ी हवा के लिए खोल के आते है।
©®दीपिका
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चलो फिर से शुरू करते है।https://myaspiringhope.wordpress.com/2020/04/03/chalo-phir-se-shuru-karte-hai/
बेमक़सद जीना भी कोई जीना है?
https://myaspiringhope.wordpress.com/2020/04/01/bemaksad-jina-bhi-koi-jina-hai/
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https://anchor.fm/deepika-mishra/episodes/DuaayeBlessings-ec1mq3
चलो फिर से शुरू करते है!
स्वागत है आप सभी लोगों का, “बातें कुछ अनकही सी” के तीसरे भाग में, जहां हम बात करेगें, एक नई शुरूवात की, अपनी चाहतों और कोशिशों की, तो देर न करते हुए चलिए शुरू करते है।
इस बड़ी सी दुनिया में अपनी छोटी सी जगह चाहती हूं।
जो दे दिल को सुकून और सपनों को उड़ान, वो ख़्वाब देखना चाहती हूं।
बहुत ज्यादा बड़ा ना सही, पर एक छोटा सा कोना अपने लिए चाहती हूँ।
बड़ी बड़ी इमारतें ना सही, एक अपना सा घरौंदा अपने लिए चाहती हूं।
इस बड़ी सी दुनिया में अपनी छोटी सी जगह चाहती हूं।
चलो फिर से शुरू करते है!
जो दिल में दबा हुआ है उसे एक नया रूप दे देते है,
क्या हुआ जो पूरी नहीं हुई कोशिश आज, चलो फिर से शुरू करते है।।
एक बार में ही सफलता मिल जाये ये कोई जरूरी तो नहीं है,
कोशिश करना तो हमारे हाथ में ही है, किसी ने रोका थोड़े ही है।
चंद कोशिशों के बाद हर मान लेना हमारी जीत की संभावनाओं को हमसे दूर कर देते है।
क्या हुआ जो पूरी नहीं हुई कोशिश आज, चलो फिर से शुरू करते है।।
चींटी बार बार कोशिश करके भी थकती नहीं है,
जंग आत्म बल से जीती जाती है, इसका एक बेमिसाल उदाहरण पेश करती है।
क्या हम खुद के लिए खुद चुनौती नहीं बन सकते है।
क्या हुआ जो पूरी नहीं हुई कोशिश आज, चलो फिर से शुरू करते है।
मन के हारे हार और मन के जीत होती है,
कठिनाइयाँ रास्ता जरूर रोक सकती है पर अंतिम अवसर जरूर देती है।
अब ये हम पर है कि हम क्या फैसला लेते है?
क्या हुआ जो पूरी नहीं हुई कोशिश आज, चलो फिर से शुरू करते है।
https://myaspiringhope.wordpress.com/2020/03/11/koshishe-2/
कविता सुनने के लिए यहाँ क्लिक करें।
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बेमक़सद जीना भी कोई जीना है?
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अजीब दास्तां है ये!
https://myaspiringhope.wordpress.com/2020/04/01/ajeeb-dastaan-hai-ye/
बेमक़सद जीना भी कोई जीना है?
बिना मक़सद की ज़िंदगी के बारे में सोच कर देखिए?
क्या महसूस होगा? कैसा महसूस होगा?
चलिए आज बात करते है “बातें कुछ अनकही सी” के दूसरे भाग में, इसी बेमक़सद ज़िन्दगी के बारे में।
जिसके बारे में पता नहीं है, क्या कर रहे है और क्यूँ कर रहे है?
बेमक़सद जीना भी कोई जीना है?
बिना मक़सद की ज़िंदगी जैसे पिंजरे में बंद पंछी की सी, जी तो रहा है पर न कोई उमंग है और ना कोई उत्साह।
ना कोई लक्ष्य, ना लक्ष्य को पूरा करने की चाह।।
लक्ष्य होना बहुत जरूरी है जीने के लिए,
वो ज़मीन तैयार करने के लिए, उन सपनों में रंग भरने के लिए।।
मक़सद ना हो तो बेमानी हो जाता है हर साथ और हर संग।
और खूबसूरत ज़िंदगी भी हो जाती है बदसूरत और बदरंग।।
कैसे सिर्फ एक लक्ष्य ज़िन्दगी जीने का मक़सद बदल देता है।
दिन सिर्फ़ एक दिन नहीं रहता है, साथ में रहता है एक जुनून जो कि रातों को सोने नहीं देता है।
अगर इस दुनिया में आए है तो एक निमित्त सबका तय ही होता है, ऐसा मेरा मानना है।
हो सकता है आप कुछ अलग सोच रखते हो इस बारे में, ये तो सबका अपना सोचने का तरीका है।
क्यूँ गवाँ देना इस मौक़े को यूँ ही सोने, उठने में?
ज्यादा सोचने में और आधे खाली गिलास की चर्चा में?
तय करो कि इस दुनिया से जाते वक़्त कोई ख़्वाहिश अधूरी ना रह जाए।
मन खोया खोया से और दिमाग उलझा उलझा से ना रह जाए।
आशा करती हूँ कि आज की अनकही बातें आपको पसंद आई होगी। मैं मिलती हूँ कल फिर आपसे, तब तक के लिए अपना ध्यान रखिये।
स्वस्थ रहिये, घर पर ही रहिए।
©®दीपिका
https://myaspiringhope.wordpress.com/2020/01/12/lakhsya-jarur-banao/
सुनिये इस कविता को!
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आप मेरी अन्य कविताओं को यहाँ सुन भी सकते है,
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