एक अदद “संडे” के इंतज़ार में निकल जाता है पूरा “हफ़्ता”।
और “अलसाई आँखें” खुश होने लगती है कि अब”नींद”पूरी होने वाली है।
पर क्या पता उस “पगली” को कि पूरे हफ़्ते की कसर तो “संडे” को ही निकलने वाली है।
बचे हुए “कामों की लिस्ट” और “ढेरों फरमाइशें” अब उसका बेसब्री से इंतज़ार कर रही है।
पर वो भी “चंद सुकून” के पलों की चाहत में अपना “सीक्रेट प्लान” तैयार कर रही है।
पर कहाँ गया मम्मी का संडे?
वो खुद को समझाकर फिर से बचे हुए कामों को समेटने में “व्यस्त” हो जाती है।
और अपने “सीक्रेट प्लान” को भूलाकर फिर से अगले संडे का “इंतज़ार” करने लग जाती है।
©® दीपिका
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