हम अच्छे वक़्त का इंतज़ार ही करते रहते जाते है,
कुछ पीछे छूट जाता है तो कुछ हम खुद छोड़ के आगे बढ़ जाते है।
ऐसा कर के कभी खुद को धोखा देते है,तो कभी किसी और से धोखा पाते है।
और फिर एक बार हम अच्छे वक़्त का इंतज़ार ही करते रह जाते है।
समय का पहिया गतिमान है किसी के लिए नहीं रुकता है,
हमें ही समझनी होती है उसकी गति और खुद ही सामंजस्य बिठाना पड़ता है।
गलती हमारी होती है और हम दूसरों पर दोष मढ़ते रह जाते है,
और हम फिर यूँ ही हाथ पर हाथ रखकर अच्छे वक़्त का इंतज़ार ही करते रह जाते है।
समय रहते ही चीजों को सुधारने की कोशिश की होती तो शायद नज़ारे कुछ और होते।
हमारे भी परिश्रम और सफलताओं के किस्से चहुँ ओर होते।
अच्छे वक़्त का इंतज़ार नहीं, अच्छा वक्त खुद के लिए कमाना पड़ता है।
खुद को हर उस हारी हुई सोच से ऊपर उठाकर जीत के क़ाबिल बनाना पड़ता है।
वरना हम अच्छे वक़्त का इंतज़ार ही करते रहते जाते है,
कुछ पीछे छूट जाता है तो कुछ हम खुद छोड़ के आगे बढ़ जाते है।
©®दीपिका
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