क्यूँ कथनी और करनी में इतना अंतर है?
भीतर के भाव और वाणी में छुपा ऱाज भयंकर है।
अच्छा सबको लगता है दो मीठे बोल प्यार के सुनना,
पर क्यूँ कल्पना के सागर और जीती वास्तविकता में इतना अंतर है?
जताया जाता है कि हम साथ खड़े है हर पल तुम्हारे,
तुम व्यर्थ डटे हो, हम ही तो दे रहे है बाजुओं को सहारे।
हर वक़्त बड़े होने का भाव दिखाया जाता है,
पर शायद बड़ा बनने के लिए भी बड़प्पन को पहले अंदर पनपाया जाता है।
क्यूँ ये समझना और समझाना इतना मुश्किल है?
क्यूँ कथनी और करनी में इतना अंतर है?भीतर के भाव और वाणी में छुपा राज़ भयंकर है।
©® दीपिका