बिना मक़सद की ज़िंदगी के बारे में सोच कर देखिए?
क्या महसूस होगा? कैसा महसूस होगा?
चलिए आज बात करते है “बातें कुछ अनकही सी” के दूसरे भाग में, इसी बेमक़सद ज़िन्दगी के बारे में।
जिसके बारे में पता नहीं है, क्या कर रहे है और क्यूँ कर रहे है?
बेमक़सद जीना भी कोई जीना है?
बिना मक़सद की ज़िंदगी जैसे पिंजरे में बंद पंछी की सी, जी तो रहा है पर न कोई उमंग है और ना कोई उत्साह।
ना कोई लक्ष्य, ना लक्ष्य को पूरा करने की चाह।।
लक्ष्य होना बहुत जरूरी है जीने के लिए,
वो ज़मीन तैयार करने के लिए, उन सपनों में रंग भरने के लिए।।
मक़सद ना हो तो बेमानी हो जाता है हर साथ और हर संग।
और खूबसूरत ज़िंदगी भी हो जाती है बदसूरत और बदरंग।।
कैसे सिर्फ एक लक्ष्य ज़िन्दगी जीने का मक़सद बदल देता है।
दिन सिर्फ़ एक दिन नहीं रहता है, साथ में रहता है एक जुनून जो कि रातों को सोने नहीं देता है।
अगर इस दुनिया में आए है तो एक निमित्त सबका तय ही होता है, ऐसा मेरा मानना है।
हो सकता है आप कुछ अलग सोच रखते हो इस बारे में, ये तो सबका अपना सोचने का तरीका है।
क्यूँ गवाँ देना इस मौक़े को यूँ ही सोने, उठने में?
ज्यादा सोचने में और आधे खाली गिलास की चर्चा में?
तय करो कि इस दुनिया से जाते वक़्त कोई ख़्वाहिश अधूरी ना रह जाए।
मन खोया खोया से और दिमाग उलझा उलझा से ना रह जाए।
आशा करती हूँ कि आज की अनकही बातें आपको पसंद आई होगी। मैं मिलती हूँ कल फिर आपसे, तब तक के लिए अपना ध्यान रखिये।
स्वस्थ रहिये, घर पर ही रहिए।
©®दीपिका
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