बीते कल की परछाई!
लोग कहते है कि बीते कल में जिया नहीं करते,
हाथों से रेत फिसल जाने के बाद मुट्ठी मला नहीं करते।
पर बीते कल की परछाईयाँ आपका पीछा कहाँ छोड़ती है?
कितना भी भूलने की कोशिश करो, कहीं न कहीं जहन में जिंदा रहती है।
कभी हिम्मत तो कभी उदासी देती है,
कभी कुछ नाज़ुक पल की यादें तो कभी आगे बढ़ने की नसीहत देती है।
बहुत कुछ सीखते है हम बीते कल की परछाइयों से,
कुछ की गई गलतियों से तो कुछ उन्हें ना दोहराने की कोशिश में खुद से की गई लड़ाईयों से।
इतना भी आसां नहीं होता, अतीत से पीछा छुड़ा लेना,
पर मिलता क्या है याद करने से, ये भी एक गंभीर बहस का मुद्दा है।
अगर अच्छाई लेकर आगे बढ़ रहे है, तो फिर भी ठीक है,
पर गर “रंजिश ए गम” पाल रखा है तो बहुत मुश्किल है।
जल्द से जल्द बाहर निकलना होगा इन परछाइयों से,
बीते दिनों की मायूँसियों से और तन्हाईयों से।
सच है कि बीते कल में जिया नहीं करते।
हाथों में से रेत फिसल जाने के बाद मुट्ठी मला नहीं करते।
©®दीपिका
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