देशभक्ति: हर वो व्यक्ति सच्चा देशभक्त होता है।

हर वो व्यक्ति सच्चा देशभक्त होता है जो कि अपने कर्तव्यों की जिम्मेदारी और अपने अधिकारों की समझ रखता है,

क्या अच्छा है, क्या बुरा है उसके और उसके समाज के लिए उसकी परख रखता है।

हर वो व्यक्ति सच्चा देशभक्त होता है जो कि अपने कर्तव्यों की जिम्मेदारी और अपने अधिकारों की समझ रखता है।

सिर्फ़ सांकेतिक देशभक्ति दिखाना ही काफ़ी नहीं होता,

क्योंकि स्वाध्याय का पाठ तो अपने घर से ही शुरू होता है।

ना किसी से डरे, ना डराएं, ना बेवज़ह लड़े, ना लड़ाएं,

ना सहे गलत, ना दूसरों के साथ होते देख कर भी उसका मौन भागीदार बनता जाएँ।

जिस समाज में हम रहते है उसको धरातल और सोच से स्वच्छ रखना ही सच्ची देशभक्ति है,

हमारे कर्म हमारी सोच का दर्पण बन जाएँ, यही सही अभिव्यक्ति है।

हर वो व्यक्ति देशभक्त होता है जो कि अपने कर्तव्यों की जिम्मेदारी और अपने अधिकारों की समझ रखता है।

क्या अच्छा है, क्या बुरा है उसके और उसके समाज के लिए उसकी परख रखता है।

https://youtu.be/uiGnGhXF-zY

~~दीपिकामिश्रा

https://youtu.be/S5qp4qvbNxo

इल्तेज़ा इतनी कि तू अपनी जड़ों को मत भूल जा…

इल्तेज़ा इतनी कि तू अपनी जड़ों को मत भूल जा,

जिन ऊँगलियों को पकड़ कर सीखा है चलना, उनसे हाथ न छुड़ा।

पथराई आँखे, काँपते हाथ शायद बहुत कुछ कहना चाहते है तुझसे,

इस भाग दौड़ की आपाधापी में तू इनसे नज़रें ना चुरा।

इल्तेज़ा इतनी कि तू अपनी जड़ों को मत भूल जा…..

तेरा तुझमें बहुत कुछ उनका सा भी है,

तुझे सम्पूर्ण बनाने में जिसने अपना खून पसीना दिया।

अब आगे निकल जाने पर उनको पिछड़ा ना गिना,

सिर्फ़ बातों से नहीं, अपने प्यार से उनके प्यार की क़ीमत चुका।

इल्तेज़ा इतनी कि तू अपनी जड़ों को मत भूल जा….

©®दीपिकामिश्रा

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Deepika Mishra

काश!! सब मन चाहा होता…


कितने लोगों ने कितनी ही बार ये सोचा होगा,
सोते जागते इन सपनों को बुना होगा।

कितना अच्छा होता कि सब कुछ मन चाहा होता,जो मन होता वो कर जाता, जहाँ मन चाहे टहल आता।

काश!! सब मन चाहा होता…तो कितना अच्छा होता।

पर जिंदगी इंस्टेंट नूड्ल्स की तरह नहीं होती वो तो एक स्वादिष्ट डिश की तरह होती है,

जिसे पकने में काफ़ी समय, काफ़ी धैर्य, काफ़ी कौशल और काफ़ी कला लगती है।

जहाँ नमक, मिर्च और मसालों का समायोजन एकदम संतुलित होता है,
कोई भी स्वाद एक दूसरे को ओवर पॉवर नहीं कर रहा होता है।

वैसे ही ज़िंदगी होती है जहाँ बहुत से रिश्ते बनते और बिगड़ते रहते है,
आगे बढ़ने और ऊँचा बनने की लड़ाई में एक दूसरे से कितना झगड़ते रहते है।

खुद को ऊँचा उठाने की कोशिश करे, दूसरों को गिराने की नहीं,
सब कुछ मनचाहा मिल जाता तो जिंदगी का ये स्वाद रह जाता, कहिए सही कह रही हूँ या नहीं।

जो मनचाहा मिलता है उसका स्वागत करे, उसका आंनद ले।
और जो नहीं मिला है उसके बारे में सोचकर खुले रास्तों को बंद ना करे।

©®दीपिकामिश्रा

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https://youtu.be/FuoT8pxZokM

रंगों की बोली…

रंग बदलती इस दुनिया में कुछ रंग ऐसे भी है

जिन से बनती है ये ज़िन्दगी खूबसूरत और बेहतरीन।

जो ये रंग ना हो तो

सब कुछ होते हुए भी लगे फ़ीका फ़ीका जैसे नमक बिना लगे नमकीन।

वो रंग है अपनेपन का, जो खून के रिश्तों का मोहताज़ नहीं होता।

वो रंग है दोस्ती का, जो यारों के लिए हर डाँट सुनने को तैयार रहता है।

वो रंग है सादगी का, जो सारी चकाचौंध को खुद में समा लेता है।

वो रंग है समर्पण का,जो अपनों की सुध में खुद को भुला देता है।

वो रंग है सच्चाई का, जो हर झूठ को आईना दिखा देता है।

वो रंग है अच्छाई का, जो बुराई को भी खुद में समा लेता है।

वो रंग है खुशी का, जो गमों को भुला दे।

वो रंग है हँसी का जो फिर से जीना सीखा दे।

~~दीपिकामिश्रा

अर्ज़ किया है…ये जरूरी तो नहीं।

अपनापन खून के रिश्तों की ड़ोर से बंधा हो,

ये जरूरी तो नहीं।

मैं सोचती हूँ जैसा अपने बारे में,

तुम भी सोचो वैसा मेरे बारे में ये जरूरी तो नहीं।

तुम आज़ाद हो, मेरे बारे में अपनी राय बनाने में,

मुझे मेरी दृष्टि में हेय बनाकर बार बार नज़रों से गिराने में।

पर…पर

तुम्हारे प्रयासों को सफलता तब ही मिलेगी,

जब मैं भी तुम्हारी सोच में अपनी मौन सहमति दर्शा दूँ।

तुम बनाना चाहते थे जैसा मुझे शनै शनै मैं भी खुद को वैसा बनता देखूँ।

भीड़ से अलग सोचने में और अलग खड़ा रहने में एक अलग सी हिम्मत लगती है,

जाने सब करते है क्यूँ ऐसा मेरे साथ ही, इस बारे में सोचना मुझे वक़्त की बर्बादी लगती है।

अपना काम करना और खुश रहना, ये मेरे जीने का सिद्धांत हो सकता है,

सबकी ज़िंदगी का भी यही हो सिद्धांत, ये जरूरी तो नहीं।

अपनापन खून के रिश्तों की ड़ोर से बंधा हो,

ये जरूरी तो नहीं।

मैं सोचती हूँ जैसा अपने बारे में,

तुम भी सोचो वैसा मेरे बारे में ये जरूरी तो नहीं।

~~दीपिकामिश्रा

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https://youtu.be/TgocQn4Yicc

Maybe she is good for nothing for others…

Maybe she is good for nothing for others…

But how can she ignore it???

Damn!! It is her self respect.No matter what others think.

Now it is high time…she must listen to her inner voice,

Others must understand that she too can have her own choice.

Why do they question her personality and integrity?

Are they even worthy enough to blot her dignity?

When they harass her with an abusive tone and rough voice,

How then does she accept this, after all, isn’t it a matter of her pride!

Gradually she also starts accepting what others think about her.

She doesn’t even feel like facing her favourite mirror.

She doesn’t understand what is going wrong with her.

How can she be the reason for every problem?

It is high time, she understands that she too own a unique place in between those thousand personalities,

She can also think about her future and life, despite fulfilling her duties.

Maybe she is good for nothing for others….

~~Deepika Mishra

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Deepika Mishra

Motivational Blogger & Writer

नई खुशियों के द्वार

नई खुशियों के द्वार…

जब खुद को समझाना मुश्किल लगने लगे, जब हर अपना बेगाना लगने लगे,

जब हर बात दिल को दुःखाने लगे, जब आंखें भी सबसे नज़रें चुराने लगे।

तो समझ लेना कि मन घावों से भर गया है, ना चाहते हुए भी मन में कुछ गढ़ सा गया है।

ये समय है खुद को नकारात्मक विचारों से दूर करने का,जो घट चुका है उसे भुलाकर आगे बढ़ने का।

क्योंकि जब तक हम उन्हीं बातों में उलझे रहेंगे,अपने उत्साह को पल पल खोते रहेंगे।

जरूरी नहीं कि एक बार जो गलत हुआ है, वो बार बार ही अपने आप को दोहराएगा,जो हो रहा है उसमें छिपा हो सकता है कोई मक़सद जिसका आभास आपको भविष्य ही करवाएंगा।

अपनी खुशियों की चाबी अपने हाथ में ही रखिये,दूसरों को मत दीजिये, ये समझना भी अब जरूरी हो जाता है,

कब तक भटकते रहोगे आप गम के अंधेरों में, खुद को एक मौका देना भी नई खुशियों के द्वार खोल जाता है।।

©®दीपिका मिश्रा

जब मैं थक जाया करती हूँ…

जब मैं थक जाया करती हूँ तो खुद को समझाया करती हूँ कि कोई बात नहीं,

थोड़ा सुस्ता ले…

थम जा थोड़ा और अब तक के जिए पलों के थोड़ा हिसाब लगा ले।

कोई हर्ज़ नहीं है थोड़ा गुणा भाग करने में,

क्या खोया, क्या पाया इस जद्दोजहद की जांच करने में।

जब मैं थक जाया करती हूँ तो खुद को समझाया करती हूँ,

सारी जिम्मेदारियों के बोझ तले कुछ पल सुकूँ के अपने लिए चुराया करती हूँ।

जहाँ ना बंदिश होती है ख्यालों पर और ना ही किसी सोच का पहरा होता है,

आज़ादी होती है खुद से मिलने की, उन चंद मिनटों का वक़्त भी कितना सुनहरा होता है।

जहाँ मैं खुद से मिला करती हूँ, खुद से गिला करती हूँ,

रखती हूँ लेखा जोखा अपने सपनों का, अपने अरमानों का,

जो पूरे हुए उनका और जो छूट गए उनके हर्ज़ानों का।

जब मैं थक जाया करती हूँ तो खुद को समझाया करती हूँ कि कोई बात नहीं, थोड़ा सुस्ता ले…

थम जा थोड़ा और अब तक के जिए पलों के थोड़ा हिसाब लगा ले।

अगर लगे कि सब बराबर है तो फिर तो कोई गम ही नहीं,

पर गर लगे कि मामला गड़बड़ है और स्थिति काबू में नहीं है तो रास्ता बदलने में भी देर नहीं लगाती हूँ।

जब मैं थक जाया करती हूँ तो खुद को समझाया करती हूँ।

~~दीपिका मिश्रा

https://youtu.be/CMELPt4vzGM

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बातें कुछ अनकही सी..

Baate kuch ankahi si..

https://myaspiringhope.wordpress.com/2020/07/15/baate-kuch-ankahi-si/

पॉडकास्ट सुने… जिओ दिल से!!

Podcast… Jio Dil Se

https://anchor.fm/deepika-mishra

नई कविता

New poem…

वक़्त जो ठहर से गया है

https://youtu.be/UHUGbFsx_6k
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Regards & Gratitude,

Deepika Mishra

जिंदगी एक इम्तेहान!!

जिंदगी एक इम्तेहान..

जिंदगी हर कदम एक नया इम्तेहान लेती है,कभी फूलों का हार तो कभी काँटों की सेज देती है

।ये हम पर है कि क्या हम डर जाते है मुश्किलों का सामना करने से?

कभी खुद की कमजोरियों से और कभी औरों की चुनौतियों से।

ये भी सच है कि..बार बार किस्मत दरवाजे पर दस्तक दिया नहीं करती है,

जो गर तू खुद अपनी कद्र नहीं करती है तो औरों से अपेक्षा भी व्यर्थ ही रखती है।

कुछ चीजों को अब समय के साथ सीखना ही होगा..

खुद ही अपने मनोबल को ऊँचा करना होगा,

और हर छोटी बात को दिल पर लगाकर, व्यर्थ में समय गँवाने की आदत को भूलना होगा।

तभी एक आशा से भरी राह खुद के लिए खोज पाएंगे,

थोड़ा थोड़ा करके ही सही अपनी सफलता का घड़ा खुद अपने लिए भर पाएंगे

~~दीपिका

उम्मीदों वाली राह!

एक रास्ता बंद हो तो दूसरा खुल सकता है।मुश्किलें कितनी ही गहरी क्यूँ ना हो, हल निकल ही सकता है।

असफलता बंद नहीं कर सकती, द्वार सफलता के,

अगर खोजे जाएं तो निकल आएंगे हज़ारों बहानें जीने के।

आसां लगता है हमें हार मान कर बैठ जाना।

ये तो मुझसे होगा ही नहीं, ये सोच कर जंग लड़ने से पहले हथियार डाल देना।

शायद एक छोटी सी कोशिश एक नई आशा का द्वार खोल सकती है।

जो कल तक लगता था तुझे असंभव, वही आस की मिट्टी एक नई कोंपल अंकुरित कर सकती है।

एक रास्ता बंद हो तो कोशिश करने से दूसरा खुल सकता है।

मुश्किलें कितनी ही गहरी क्यूँ ना हो, हल निकल ही सकता है।

~~©®दीपिका

https://youtu.be/RxJQiVYn8NU