और भी दर्द है इस जमाने में।

चलिए आज बात करते है “बातें कुछ अनकही सी” में कुछ उस अनकहे दर्द के बारे में, जिसे कई बार हम समझ पाते है और कई बार जाने अनजाने अनसुना कर देते है अपनी ज़िंदगी की भाग दौड़ में।

भी दर्द है इस ज़माने में

खुदगर्ज़ी की इन्तेहाँ तो देखो, वो दर्द भी दिए जाते है और “बेकसूर” भी कहलाते है,

क्या करे अपना दर्द बयां?

और भी दर्द है इस जमाने में, चलो किसी बंद दरवाजें को ताज़ी हवा के लिए खोल के आते है।

पैबंद तो कई है आज भी उसकी पोशाक पर,

पर नज़रों के वार उसके वजूद को तार तार किए जाते है।

और भी दर्द है इस जमाने में, चलो किसी बंद दरवाजें को ताज़ी हवा के लिए खोल के आते है।

बहुत बड़ी तादाद है अभी भी ऐसे लोगों की, जो कि सिर्फ अपने दर्द को सबसे बड़ा पाते है।

किसी की टूटी चारपाई और किसी की घिसी चप्पलें उनका “हाल ए दर्द” छुपा भी नहीं पाते है।

क्या कहे और क्या नहीं, इतना अंतर भी अपनी मासूमियत में समझ भी नहीं पाते है,

और भी दर्द है इस जमाने में, चलो किसी बंद दरवाजें को ताज़ी हवा के लिए खोल के आते है।

खुद गर्ज़ इतने भी ना बने कि खुदगर्ज़ी खुद शर्म के चोले में छुप जाए।

कोई भूखा, कोई बीमार सिर्फ़ मदद की आस में हाथ फैलाता ही रह जाए।

चलो कुछ कम करने की कोशिश करते है ऊँच नीच के फ़ासलें को और आधी आधी बाँट कर खाते है।

और भी दर्द है इस जमाने में, चलो बंद दरवाजों को ताज़ी हवा के लिए खोल के आते है।

©®दीपिका

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बेमक़सद जीना भी कोई जीना है?
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बेमक़सद जीना भी कोई जीना है?

बिना मक़सद की ज़िंदगी के बारे में सोच कर देखिए?

क्या महसूस होगा? कैसा महसूस होगा?

चलिए आज बात करते है “बातें कुछ अनकही सी” के दूसरे भाग में, इसी बेमक़सद ज़िन्दगी के बारे में।

जिसके बारे में पता नहीं है, क्या कर रहे है और क्यूँ कर रहे है?

बेमक़सद जीना भी कोई जीना है?

बिना मक़सद की ज़िंदगी जैसे पिंजरे में बंद पंछी की सी, जी तो रहा है पर न कोई उमंग है और ना कोई उत्साह।

ना कोई लक्ष्य, ना लक्ष्य को पूरा करने की चाह।।

लक्ष्य होना बहुत जरूरी है जीने के लिए,

वो ज़मीन तैयार करने के लिए, उन सपनों में रंग भरने के लिए।।

मक़सद ना हो तो बेमानी हो जाता है हर साथ और हर संग।

और खूबसूरत ज़िंदगी भी हो जाती है बदसूरत और बदरंग।।

कैसे सिर्फ एक लक्ष्य ज़िन्दगी जीने का मक़सद बदल देता है।

दिन सिर्फ़ एक दिन नहीं रहता है, साथ में रहता है एक जुनून जो कि रातों को सोने नहीं देता है।

अगर इस दुनिया में आए है तो एक निमित्त सबका तय ही होता है, ऐसा मेरा मानना है।

हो सकता है आप कुछ अलग सोच रखते हो इस बारे में, ये तो सबका अपना सोचने का तरीका है।

क्यूँ गवाँ देना इस मौक़े को यूँ ही सोने, उठने में?

ज्यादा सोचने में और आधे खाली गिलास की चर्चा में?

तय करो कि इस दुनिया से जाते वक़्त कोई ख़्वाहिश अधूरी ना रह जाए।

मन खोया खोया से और दिमाग उलझा उलझा से ना रह जाए।

आशा करती हूँ कि आज की अनकही बातें आपको पसंद आई होगी। मैं मिलती हूँ कल फिर आपसे, तब तक के लिए अपना ध्यान रखिये।

स्वस्थ रहिये, घर पर ही रहिए।

©®दीपिका

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ज़िंदगी का मोल

मुद्दतें बीत जाती है ये सोचने में कि ज़िंदगी तेरा मोल क्या है?

यूँ ही बेवज़ह खो देते है हम वो अनमोल पल जिसमें सारा संसार बसा है।

क्यूँ है हम पाबंदियों के मोहताज़ तेरे अक़्स से रुबरु होने के लिए?

ये तो सबसे अच्छा मौका है, खुद को साबित करने का कि कैसे जिया जाता है इंसानियत के लिए।

हमारी एक छोटी सी सावधानी, लाखों ज़िन्दगियों को सुरक्षित कर सकती है।

घर पर रहिए, सजग रहिए और जागरूक रहिए,अभी यही सबसे बड़ी राष्ट्र सेवा हो सकती है।

नोट– इस समय सबको अभी ज़िम्मेदारी और भागीदारी को समझना चाहिए।

©®दीपिका

“Jio Dil Se” Podcast Poetry: First Episode

Hello Everyone!

I am very glad to announce that, I just published the first episode of my new podcast!

Listen to “Jio Dil Se” Poetry By Deepika Mishra on Anchor

https://anchor.fm/deepika-mishra/episodes/Dil-Chota-Na-Kar-eamg8g

Listen and give your feedback. I hope you will give your love and support as always.

Thanks & Regards,

Deepika

तन्हाईयाँ

भरी भीड़ में भी जो तन्हाईयाँ ढूंढ़ता है, वो मेरा अक़्स ही तो है जो एक मनपसंद आईना ढूंढ़ता है।

शायद उसको आदत हो गई है खुद ही कहकर खुद ही सुनने की,पर फिर भी हर दूसरे पल आहट पर बंद दरवाजा खोलता है।

भरी भीड़ में भी जो तन्हाईयाँ ढूंढ़ता है, वो मेरा अक़्स ही तो है जो एक मनपसंद आईना ढूंढ़ता है।

वो क्या समझेगा गुमनामी को उसकी?जो खुद गुमशुदा होकर अपना नाम पता पूछता है।

भरी भीड़ में भी जो तन्हाईयाँ ढूंढ़ता है, वो मेरा अक़्स ही तो है जो एक मनपसंद आईना ढूंढ़ता है।

चाहत को उसकी समझना इतना भी आसां नहीं है। जो ना आँखों से, ना ही शब्दों से अपना गम बयां करता है।

भरी भीड़ में भी जो तन्हाईयाँ ढूंढ़ता है, वो मेरा अक़्स ही तो है जो एक मनपसंद आईना ढूंढ़ता है।

©®दीपिका

https://www.instagram.com/p/B8whO53HnR9/?igshid=16xt8nrrrpeob

https://myaspiringhope.wordpress.com/2020/02/10/bejuba-pyar/

कद बड़ा या सोच?

शालिनी चुलबुली सी और प्यारी सी एक लड़की थी जो हमेशा हँसती खेलती रहती थी। पढ़ाई में अव्वल, खेल कूद में आगे, घर के कामों में निपुण। सब कुछ परफेक्ट सा था उसका। किसी का दिल दुखाना क्या होता है? उसे पता तक नहीं था, अपनी दुनिया में मस्त एक ज़िम्मेदार लड़की, बस एक ही कमी थी उसमें लोगों के हिसाब से, उसकी हाइट।

हाँ, छोटे कद की थी वो और उसकी इस शारीरिक कमी के लिए उसे न जाने क्या क्या सुनना पड़ता था? मानों उसके हाथ में था ये सब! उसने जानबूझकर अपना कद कम किया हो।

उसकी सारी अच्छाइयों को छिपाने के लिए उसके कद को जरिया बनाया जाता था। उसे जताया जाता था हमेशा की वो छोटी है, उसका मजाक बनाया जाता था कि ये नहीं कर सकती वो, यहाँ नहीं पहुँच सकती वो, ये तो इसके बस का ही नहीं है, वगेरह वगेरह।

शालिनी को बुरा तो बहुत लगता था पर वो उन्हें जवाब देना जरुरी नहीं समझती थी। उसने सोच लिया था कि वह लोगों के तानों का जवाब अपने हुनर से देगी, अपने काम से देगी, उनसे लड़ कर नहीं। जैसे जैसे उसकी उम्र शादी के लायक होती गई लोगों के ताने भी बढ़ गए पर उसने परवाह नहीं की।

धीरे धीरे शालिनी की माँ से भी कहा जाने लगा कि “तुम्हारी लड़की की हाइट तो छोटी है, कोई अच्छा लड़का नहीं मिलेगा तुम्हारी शालिनी को”। शालिनी की माँ भी पलट कर जवाब में बिना हिचके कह ड देती थी कि “क्या कमी है मेरी बेटी में? जो उसकी खूबियों को नहीं समझते उनमें और उनकी सोच में कमी है, मेरी बेटी में नहीं।”

शालिनी की माँ लोगों से तो कह देती थी पर मन ही मन वो भी जानती थी लोगों की सोच को और डरती थी अपनी बेटी के भविष्य को लेकर। उसने कभी भी शालिनी को जाहिर नहीं होने दिया पर शालिनी समझ गयी थी अपनी माँ की चिंता को।

उसने माँ से आगे बढ़कर बात की और उसे समझाया, “माँ आप चिंता मत करो।” जो इंसान मेरे व्यक्तिव से नहीं, मेरे बाहरी रंग रूप से मेरी पहचान करेगा वो ज़िंदगी भर मेरा साथ क्या निभायेगा? मैं जैसी हूँ,वही मेरी पहचान है।

वो आगे बोली, “माँ आपने वो कहावत तो सुनी होगी की “बड़ा हुआ तो क्या हुआ जैसे पेड़ खजूर? पंछी को छाया नहीं, फल लागे अति दूर।”

मैं अपनी कमी को अपनी ताकत से हरा दूंगी। और तब ही शादी करुँगी जब मुझे, मैं जैसी हूँ वैसे ही स्वीकार किया जाएगा और वो भी सम्मान के साथ, तब तक हम इस बारे में बात भी नहीं करेंगे।

शालिनी लोगों की कही बातों को पीछे छोड़ कर और अपनी माँ को समझाकर अपनी आईएस की परीक्षा की तैयारी में पूरे जोर शोर से लग गयी, “अब उसका एक ही लक्ष्य था अपनी योग्यता से अपने व्यक्तिव की पहचान बनाना ना की अपने कद से।”

रिजल्ट आया तो सब हैरान हो गए, शालिनी ने पहले ही प्रयास में आईएस क्लियर कर लिया था और साथ में ही कर दिया उन सभी लोगों का मुँह बंद जो हमेशा उसे कोसने के लिए ही मुँह खोलते थे।

कुछ ही महीनों में उसने अपने व्यक्तिव से,अपने काम से अपनी एक अलग पहचान बना ली थी और बना ली थी जगह समीर के दिल में भी। समीर शालिनी को अपना जीवन साथी बनाना चाहता था उसकी अच्छाइयों की वजह से न कि वो कैसी दिखती है इस वजह से।

शालिनी बहुत खुश थी कि उसकी खोज पूरी हो गयी उसे वो मिल गया जिसकी सोच उसकी सोच से मेल खाती है।

कैसी लगी आज की कहानी, कमेंट करके जरूर बताये।और अगर अच्छी लगी हो तो फॉलो जरुर करे।

©®दीपिका