कुछ सवालों का जवाब ढूंढ़ना ही होगा।

जो भाईचारे को भी धर्म की दृष्टि से देख रहे है वो हमारे पड़ोसी नहीं हैं।

वो तो कोई और है।

हमारे पड़ोसी तो आज भी वही लोग है जो हमारी मदद को हमारे परिवार से भी पहले आगे आते है।

ये जो हिंसा हो रही है उसमें आप जैसे, हम जैसे लोग शामिल है, इस पर अभी भी विश्वास नहीं होता।

क्यूँकि बेगुनाहों का घर यूँ ही उजाड़ देना तो हमारी संस्कृति नहीं है।^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^

कौन है वो लोग जो कत्लेआम मचा कर चले गए।
चंद लोग फिर भी हिन्दू मुस्लिम की राजनीति में लग गए।

क्यूँ?अपने आस पास देखती हूँ तो बंटवारा नज़र नहीं आता।

फिर वो कौन लोग है जिन्हें भारत को बँटा हुआ बताने में ही मज़ा आता।

क्यूँ?कुछ चंद लोगों को बिल्कुल हक नहीं है सबका नुमांइदा बनने का।

आश्चर्यचकित हूँ कैसे हम देख रहे है इस दरिंदगी को और बन रहे है उस भीड़ का हिस्सा।

क्यूँ?किसी की गलती करने पर उससे बड़ी गलती करना हमारी समझ तो नहीं है।

क्या कर रहे है हम? क्यूँ डर रहे है हम? किससे छिप रहे है हम?

इन सवालों का जवाब शायद हमारे पास नहीं है।इन सवालों का जवाब अब हमें ढूंढ़ना ही होगा।

क्या चल रहा है? क्यूँ चल रहा है? समझना ही होगा।

©®दीपिका