रंगों की बोली…

रंग बदलती इस दुनिया में कुछ रंग ऐसे भी है

जिन से बनती है ये ज़िन्दगी खूबसूरत और बेहतरीन।

जो ये रंग ना हो तो

सब कुछ होते हुए भी लगे फ़ीका फ़ीका जैसे नमक बिना लगे नमकीन।

वो रंग है अपनेपन का, जो खून के रिश्तों का मोहताज़ नहीं होता।

वो रंग है दोस्ती का, जो यारों के लिए हर डाँट सुनने को तैयार रहता है।

वो रंग है सादगी का, जो सारी चकाचौंध को खुद में समा लेता है।

वो रंग है समर्पण का,जो अपनों की सुध में खुद को भुला देता है।

वो रंग है सच्चाई का, जो हर झूठ को आईना दिखा देता है।

वो रंग है अच्छाई का, जो बुराई को भी खुद में समा लेता है।

वो रंग है खुशी का, जो गमों को भुला दे।

वो रंग है हँसी का जो फिर से जीना सीखा दे।

~~दीपिकामिश्रा

उलाहना

दूसरों पर ऊँगली उठा देना बहुत आसान होता है।
खुद को मासूम और उसको गुनहगार बता देना बहुत आसान होता है।

कभी फुर्सत हो तो बैठो और सुनो हाल ए दिल उसका भी,
शायद समझ पाओ कि हर सच को झूठ बता देना बहुत आसान होता है।

अंदाज़ा तभी लगाया जा सकता है मजबूरियों का उनकी,
गर खुद गुज़रे हो उस दोराहे से कभी।

ऐसे तो हर कोशिश पर उनकी सवाल उठा देना बहुत आसान होता है।
खुद के किये हुए को सही और दूसरों के व्यक्तित्व पर पैबंद लगा देना बहुत आसान होता है।

~©®दीपिका