अपनापन खून के रिश्तों की ड़ोर से बंधा हो,
ये जरूरी तो नहीं।
मैं सोचती हूँ जैसा अपने बारे में,
तुम भी सोचो वैसा मेरे बारे में ये जरूरी तो नहीं।
तुम आज़ाद हो, मेरे बारे में अपनी राय बनाने में,
मुझे मेरी दृष्टि में हेय बनाकर बार बार नज़रों से गिराने में।
पर…पर
तुम्हारे प्रयासों को सफलता तब ही मिलेगी,
जब मैं भी तुम्हारी सोच में अपनी मौन सहमति दर्शा दूँ।
तुम बनाना चाहते थे जैसा मुझे शनै शनै मैं भी खुद को वैसा बनता देखूँ।
भीड़ से अलग सोचने में और अलग खड़ा रहने में एक अलग सी हिम्मत लगती है,
जाने सब करते है क्यूँ ऐसा मेरे साथ ही, इस बारे में सोचना मुझे वक़्त की बर्बादी लगती है।
अपना काम करना और खुश रहना, ये मेरे जीने का सिद्धांत हो सकता है,
सबकी ज़िंदगी का भी यही हो सिद्धांत, ये जरूरी तो नहीं।
अपनापन खून के रिश्तों की ड़ोर से बंधा हो,
ये जरूरी तो नहीं।
मैं सोचती हूँ जैसा अपने बारे में,
तुम भी सोचो वैसा मेरे बारे में ये जरूरी तो नहीं।
~~दीपिकामिश्रा
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