बाहरी काया पर तो सबका ध्यान होता है पर भीतर क्या है,
ये कितने जानना चाहते है?
अगर भाया नहीं रंग रूप फिर भी,
मन की सुदंरता के लिए कितने आगे आते है?
शायद बहुत कम मिलेंगे जिनके लिए मन का सुंदर होना ज्यादा जरूरी होता है, तन के सुंदर होने से।
उन्हें आकर्षण होता है उनकी बातों का, उस आभा का, ना कि फ़र्क पड़ता है क्षणभंगुरी काया से।
बाहरी आकर्षण का क्या है?
आज है ,कल नहीं रहेगा!
भीतरी सुदंरता ही अलौकिक है, शाश्वत है, इसका अस्तित्व तो सदा बना रहेगा।
जिसके मन में मैल न हो उसकी आभा में एक अलग सी चमक दिखाई देती है।
महसूस कर सकते हो उस रूहानी अनुभव को, एक इबादत सी, एक दुआ सी सुनाई देती है।
बाहरी काया पर सबका ध्यान होता है पर भीतर क्या है,
ये कितने जानना चाहते है?
अगर भाया नहीं रंग रूप फिर भी,
मन की सुदंरता के लिए कितने आगे आते है?
©®दीपिका
लम्हे जो बीत गए है।
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बीते कल की परछाई!
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वो एक फ़रिश्ता!
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इंसानियत कुछ खो सी गई है!
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पॉडकास्ट सुने।
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