कुछ तेरी, कुछ मेरी, कुछ आधी आधी ही सही।
मैं चाहती हूँ कुछ सुनना, कुछ सुनाना,कुछ तेरी अनसुनी और कुछ मेरी अनकही।
जहाँ मैं साझा कर सकूँ अपना मन बेझिझक,चाहती हूं वो दुनिया बराबरी वाली।
जहाँ तुम भी समझो मुझे और मुझ से जुड़ी हर फिक्र,चाहती हूँ वो दुनिया बराबरी वाली।
जहाँ मुझे रोका न जाए संस्कारों के नाम पर।
जहां बदल न जाए ज़िन्दगी सिर्फ एक नए रिश्ते में बंधने पर।
जहाँ मुझे तोला ना जाए दूसरों की बनाई कसौटियों पर।
जहाँ मैं खुद तय सकूँ कि बाहर जाकर काम करना है या होम मेकर बनकर रहना है घर पर।
जहाँ मैं जी सकूँ अपने हिस्से का जीवन और नाप सकूँ अपने हिस्से का आसमां।
जहाँ सिर्फ़ मुझे न दी जाएं बेटी,बीवी, बहूँ और एक माँ की उपमा।
कुछ तेरी, कुछ मेरी, कुछ आधी आधी ही सही।
मैं चाहती हूँ कुछ सुनना, कुछ सुनाना,कुछ तेरी अनसुनी और कुछ मेरी अनकही।
जहाँ मैं साझा कर सकूँ अपना मन बेझिझक,चाहती हूं वो दुनिया बराबरी वाली।
जहाँ तुम भी समझो मुझे और मुझ से जुड़ी हर फिक्र,चाहती हूँ वो दुनिया बराबरी वाली।
महिला दिवस की ढेरों शुभकामनाएँ
©®दीपिका
https://myaspiringhope.wordpress.com/2020/03/05/barabari-ka-daawa/