ज़माना क्या माँपेगा…. उस पंछी की परवाज़ को,
उसके आगाज़ को और उसके अंजाम के अंदाज़ को….
जिसने कतरे हो खुद पंख उसके,और नाम दिया हो उसे उसकी बेहतरी के इंसाफ़ का…
उस हिज़ाब का, उस लिबाज़ का
जहाँ उसके क़दम उसकी ही बंदिशों में रुकने लगते है,
और दायरे औरों की मर्ज़ी के तकलुफ्फ़ में सिमटने लगते है।
तब वो खुद खुद को रोशन करने की ठान लेता है,
चाहत को अपनी तलवार बना जंग फान देता है।
जानता है ये जंग अपनी सोच से नहीं औरों की हैरानियों से है,
उनके विस्मय को बढ़ाती हुई उन पेशानियों से है।
©® दीपिकामिश्रा
Welcome to my podcast👇
https://anchor.fm/deepika-mishra/episodes/Episode-11-Kyun-Shir-Jhukaye-khada-hai-tu-ehan36