बंद करो,अब बहुत हो गया।

क्यूँ ये हाहाकार है? क्यूँ चारों तरफ़ मचा चीत्कार है?
क्यूँ अपनी आबरू खोने के बाद भी वो करती इंसाफ़ का इंतज़ार है?

क्यूँ डर है आँखों में उसकी? क्यूँ डरा हुआ और सदमे में उसका परिवार है?
क्या गलती थी उसकी, जो वो चिता पर और खुली हवा में घूम रहे उसके गुनहगार है?

बंद करो, अब बहुत हो गया।
बंद करो, अब बहुत हो गया।

ना समझो उसे भोग की वस्तु,
वो तो किसी की लाड़ली बेटी, बहू, पत्नी और परिवार के जीने का आधार है।

क्यूँ ये हाहाकार है?
क्यूँ चारों तरफ़ मचा चीत्कार है?

ये कैसी विडंबना है? ये कैसा सामाजिक सरोकार है? एक तरफ पूजी जाती है जो कन्या देवी के रूप में नौ दिन, क्यूँ बनती वही उन वैश्यी दरिंदों का शिकार है?

कहाँ जा रहे है हम? क्या ये ही हमारे संस्कार है?

कोई घर से निकलने में डर रही है, तो कोई घर में ही डर के साए में जीने को लाचार है।

क्यूँ ये हाहाकार है?
क्यूँ चारों तरफ़ मचा चीत्कार है?

हर घाव शरीर का, उसकी आत्मा को झलनी कर जाता है।

जीना चाहती हूँ मैं, कहकर दिल का हर दर्द उसकी आँखों में उतर आता है।

बंद करो, अब बहुत हो गया।
बंद करो, अब बहुत हो गया।

ना समझो उसे भोग की वस्तु,
वो तो किसी की लाड़ली बेटी, बहू, पत्नी और परिवार के जीने का आधार है।

कैसे विकृत मानसिकता को बढ़ावा दिया जाता है?

जो जघन्य, क्रूर और बर्बर अपराधी है, कैसे उसकी दया याचिका पर विचार किया जाता है?

जुल्म करते वक़्त जो अपराधी अपनी उम्र का होश खो बैठता है,

बाद में, गलती हो गयी कहकर अपनी उम्र का हवाला देकर सज़ा को कम करने के हजारों रास्तों के द्वार खुलवाता है।

क्या हो गया है हमें, कहाँ जा रहे है हम?

सिर्फ मोमबत्ती लेकर रास्तों पर बैठना समस्या का हल नहीं है, किसी भुलावे में जी रहे है हम।

सोच बदलने की जरुरत है वो लड़कियाँ है, भोग की वस्तु नहीं।

जला कर राख कर देंगी जो अगली बार उठी ऊँगली कोई भी।

बंद करो, अब बहुत हो गया।
बंद करो, अब बहुत हो गया।

ना समझो उसे भोग की वस्तु,
वो तो किसी की लाड़ली बेटी, बहू, पत्नी और परिवार के जीने का आधार है।

©®दीपिका

23 thoughts on “बंद करो,अब बहुत हो गया।

  1. सिर्फ मोमबत्ती लेकर रास्तों पर बैठना समस्या का हल नहीं है, किसी भुलावे में जी रहे है हम।

    bilkul sahi kaha…….dukh aisaa jiske liye shabd nahi……..aur insaniyat jiska ab naam kya len…..ye dard wo jaan saakta hai jiske saath ghatit huaa yaa phir wo jiske paas dil hai.

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  2. The day we all, male and female, understand that women are equal humans, irrespective of caste, color, creed. class and religion there would be full-stop to this crime but we know that day is a far cry. Yet, we can start taking baby steps now. Isn’t it already too late. still, this is a now or never case. I could feel your anger in words, Deepika.

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