उम्मीद

ना जाने क्यूँ आज सब कुछ धुआँ धुआँ सा लग रहा है।

अश्क दरियां सी और मन सागर सा भरा लग रहा है।

ऐसा नहीं है कि हम जानते नहीं उन्हें,

पर फिर भी न जाने क्यूँ उनके सजदे में ये सिर झुक रहा है?

सोच की गहराइयों पर भी उनका कब्ज़ा है,

ख्याबों की उड़ान पर भी कोई अनदेखा पहरा है।

फिर भी सब जानते हुए भी ये दिल गुस्ताख़ी कर रहा है।

बदल जायेगे वो हर पल ये इबादत कर रहा है।

इसी उम्मीद में कि शायद एक दिन वो समझ जायेगें,

और इस वीराने में भी उम्मीदों के फूल अपनी खुशबू फैलायेगे।

44 thoughts on “उम्मीद

  1. This is so well written and explained, i like how you have expressed the meaning of the word so beautifully and artistically. Its so well penned.

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